Friday 22 February 2013

बड़े अरसो बाद.

बड़े अरसो बाद जैसे
खुदको पा लिया,
बदला बदला सा मेरा चेहरा,
हरदम उतरासा उखाड़ासा वो,
आज अचानक चमक रहा था,
बेनूर आँखों में रोशनी भरी थी,
मैं ही हूँ? शायद आईना?
या कुछ और?
या सिर्फ मेरा भरम?
सोचा उसे छू लूँ,
बाहों में अपनी भर लिया,
वो ही जज़बात,
खुदको पाने का अहेसास,
बेजान बाहों में जैसे
जान आ गयी,
अमावस्या की रात में
चांदनी छा गयी,
क्या है ये?
खुदको कोई कैसे पा सकता है?
कौन है ये?
जो मुझमे जिंदगी भर रहा है?
वो बाहों  से जाग जब आँखें खुली,
"उन्हें" देखा अपने सामने,
हस पड़ी में खुदपे,
बड़े अरसो बाद मैंने
उनको पा लिया।

(C) D!sha Joshi.

No comments:

Post a Comment