Sunday 18 January 2015

चाँद गिरा था झाड़ियों में

याद है वो रात,
जंगल में मैं और तुम,
निकल पड़े थे
मंज़िल का ना पता कोई,
आसमान को तकते तकते,
तारों के रास्ते चल पड़े थे,
देखा तो अचानक
चाँद गिरा दूर झाड़ियों में,
हम भाग के उसे देखने गए,
कैसा छुप रहा था वो हमसे,
धीरे से नज़दीक जाके,
तुमने उसको पकड़ा था,
चाँद ने फिर मुस्कुराके
कैसा तुमको जकड़ा था,
देखी थी तुम्हारी आँखें
उस रात, जैसे
आसमान का हिस्सा आ गया हो
तुम्हारे पास.
अँधेरे में कहीं से खुशियाँ उभर रही थी राहो में,
तारे  टीम टीमा रहे थे उनमे,
और चाँद तुम्हारी बाहों में,
तुम खुश होक  तकते रहे,
मैं बाँवरी सी तुम्हें तकती रही,
याद है वो रात?
चाँद गिरा था झाड़ियों में.
- Disha Joshi

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