Saturday 26 September 2015

वो कोई

एक दिन अचानक
पुरानी यादों को ताज़ा करते करते
मुस्कुरा रही थी मैं
नज़रे तस्वीरों में थी
पर मुझे लगा कोने में खड़ा
कोई मुझे देख रहा हो.

वो कोई,
अब बार बार उसका अहसास होने लगा था..
मेरी हसी को सुनकर जैसे
मेरे लिए वो मुस्कुरा रहा हो।
मेरा रोना देखकर जैसे
मेरी नासमझी पर हस रहा हो.
गुस्सा करती हूँ तब लगता है जैसे
वो मुझे गुपचुप तक रहा हो.
कुछ  गलत करने से रोकता
तो कभी मुझको ही टोकता
वो कोई,

कभी मुझसे नज़रे मिलाता
तो कभी लुकाछुपि का खेल बन जाता।

वो कोई
जिसकी कोई तसवीर नहीं
पर कभी आँखें बंध करू तो
साँसों सा धड़कन के करीब वो होता है,
तन्हाई की रातों में आँखें खुले जब
अहसास उसका मेरे साथ ही सोता है।

वो कोई,
एक दिन
उसे तसवीर देने की कोशिश की
तो लगा जैसे वो मैं ही हूँ,
या मेरा ही अक्स. .
जो मेरी हर चाल चलन को,
मेरे हर अहसास को
मुझसे ही अलग होके 
जैसे मुझे ही  देख रहा हो.

किसीने सही कहा है…
कोई है अपने अंदर जो हमें
सही और गलत दिखाता है,
वो कोई,
जिसे देखने के लिए
नज़रो की ज़रूरत नहीं.

- Disha Joshi

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